छोटी कहानी इन हिंदी – आज हम लेकर आये हैं कुछ लघुकथाएं जो बच्चों को प्रिय होंगी और सुनके उनमे बुद्धि का विकास होगा |
एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता ।
आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता उससे बनी डिज़ाइन देखकर और खुश होता,,,,, इतने में एक लहर आयी और उसके पैरों के सब निशान मिट गये।
इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से बोला, “ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया, मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया कैसी दोस्त हो तुम ।”
तब लहर बोली, ” वो देखो पीछे से मछुआरे लोग पैरों के निशान देख कर ही तो केकड़ों को पकड़ रहे हैं… हे मित्र! तुमको वो पकड़ न लें, बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए !
सच यही है कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं, जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अतः मन में वैर लाने से बेहतर है कि हम सोच समझ कर निष्कर्ष निकालें !!

अहंकार
एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है ? नारदमुनि ने कहा- भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा | नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है। आदमी बहुत खुश रहने लगा, उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी।
एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ
आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना। इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को। मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है।
अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई। उसने नारदमुनि से पूछा की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है ? नारदमुनि ने कहा- तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या? हाँ हुई है, उसने जवाब दिया | तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है, इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएँगे – नारद जी ने जवाब दिया ।
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी। फिर उसने नारदमुनि से पूछा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है। क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ या किसी त्रुटिवश ये हो रहा है? मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है।
हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है। किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता। लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया, मैंने कमाया, मेरा है, मेरी मेहनत है, मैं कमा रहा हूँ, मेरी वजह से हो रहा है। मगर वास्तव में किसी को पता नहीं की हम किसके भाग्य का खा रहे हैं, इसलिए अपनी उपलब्धियों पर अहंकार कभी नहीं करना चाहिए…

जाम्बवान
जब राम अपनी पत्नी सीता की खोज में, जिसका अपहरण राक्षस राजा रावण ने कर लिया था, दक्षिण गये तो जाम्बवान नामक एक भालू ने उनकी मदद की थी। जाम्बवान बुद्धिमान था और उसकी सलाह पर राम रावण को परास्त करके सीता को बचाकर लाने में सफल हुए। “मैं तुम्हें एक वर देना चाहता हूँ.” राम ने आभार प्रकट करते हुए जाम्बवान से कहा। जाम्बवान ने जवाब दिया, “मैं एक पशु हूँ। मुझे जो चाहिये, यहाँ वन में मिल जाता है, इसलिए मेरे पास सचमुच आपसे माँगने को कुछ नहीं है। लेकिन आपके साथ इतना समय बिताने के दौरान मैं यह सोचता था कि आपसे लड़ने में कैसा लगेगा। बस, यही मेरी इच्छा है।”
राम ने मुस्कुराकर कहा, “इस जन्म में जब मैं राम हैं. मैं तुमसे नहीं लदूँगा। लेकिन अपने अगले जन्म में, जब मैं कृष्ण के रूप में फिर से जन्म लूँगा, तब मैं लदूँगा और हमारे घास लड़ने का एक उचित कारण भी होगा।”
सैकड़ों साल बाद, राम कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए और मथुरा नामक शहर में रहने लगे। मथुरा में एक युवा राजकुमार भी था, सुरजित, जिसे सूर्य देवता ने स्यमन्तक नामक मणि दी थी। सुरजित का भाई प्रसेनजित वन में शिकार के लिए उस मणि को पहनकर गया हुआ था। वह मरा हुआ पाया गया किन्तु मणि गायब थी। यह जानने के लिए कि हुआ क्या था, कृष्ण ने प्रसेनजित के शव के चारों ओर देखा और किसी शेर के पंजों के निशान उन्हें दिखायी दिये। वे उन निशानों पर चलते-चलते एक मरे हुए शेर के शव के पास पहुँचे।
शेर के शव के पास से एक भालू के पंजों के निशान जाते हुए दिखायी दे रहे थे।वे इन निशानों पर चलते हुए एक गुफ़ा तक पहुँचे जहाँ
उन्होंने एक भालू के बच्चे को उस मणि से खेलते देखा। कृष्ण ने वह मणि ले ली। तो बच्चा रोने लगा। बच्चे भालू का रोना सुनकर पिता भालू बाहर आया। वह जाम्बवान था। उसने कृष्ण को उस मणि के साथ देखा तो उन पर हमला कर दिया। कृष्ण और भालू बहुत देर तक कुश्ती करते रहे। एक-दूसरे को भयंकर घूंसे मारते और एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए, अन्त में कृष्ण भालू को हराने में सफल हो गये।
“आपने मुझे हरा दिया है तो आप ज़रूर राम होंगे, पुनर्जन्म के बाद। और आप फिर से जन्मे राम हैं, तो मैं आपको नमन करता हूँ और अपनी बेटी जाम्बवती का हाथ आपको विवाह के लिए प्रस्तुत करता हूँ।” इस तरह राम से लड़ने की जो इच्छा जाम्बवान के मन में थी वह पूरी हुई और जाम्बवती कृष्ण की पत्नी बन गयी।
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