Moral Stories in Hindi | तुलसीदास

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ग्राहम बेल के बारे में तुम जानते होंगे। टेलीफोन के इस आष्किारक की बुद्धि का ही कमाल है कि इंटरनेट जैसे महान -आविष्कार की कल्पना भी हो पाई। ग्राहम में लर्निंग डिसेबिलिटी थी। वे स्कूल जाने में खूब आनाकानी करते थे। ग्राहम बेल की तरह ही थॉमस अल्वा एडिशन, न्यूटन, आइंस्टीन भी थे। इन्हें भी कई तरह की गंभीर समस्याएं थीं। जैसे, थॉमस एडिसन को सुनने में तकलीफ होती थी, न्यूटन थोड़ा हकलाते थे और आइंस्टीन को ऑटिज्म था।

और हम स्टीफन हॉकिंग को कैसे भूल सकते हैं। प्रकृति और ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर महत्वपूर्ण बिगबैंग थ्यौरी देने वाले हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन डिजीज है। ऐसी बीमारी, जिसमें मरीज शरीर के किसी भी अंग पर अपना नियंत्रण खो देता है। और फिर ताउम्र व्हीलचेयर और स्पीच सिंथेसाइजर के सहारे रहना पड़ता है

हेनरी आर ल्यूस, टाइम मैगजीन के फाउंडर को हकलाने की बुरी बीमारी थी। जाहिर है इससे उनकी पर्सनैल्टी पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। इसी तरह, इंसुलिन की खोज के लिए नॉवेल प्राइज विजेता डॉक्टर फ्रेडरिक बेटिंग को भी इस बात का कोई मलाल नहीं था कि हकलाने की वजह से लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते थे। मुंशी प्रेमचंद लंबे वक्त तक क्रॉनिक डिजेंट्री से पीड़ित रहे। लेकिन सभी लीजेंड रचनाएं उन्होंने इसी दौरान लिखीं।

लियोनार्दो द विंची, इस महान चित्रकार को कौन नहीं जानता। ये भी डिसलेक्जिक जीनियस की लंबी सूची में शुमार थे।

अब्राहम लिंकन, जार्ज वाशिंगटन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, विंस्टन चर्चिल जैसे कई नाम है, जिन पर दुनिया को नाज है। इन सबको लर्निंग डिसेबिलिटी थी। लेकिन यह परेशानी इन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक पाई। अपनी जबरदस्त कम्यूनिकेशन पॉवर और लीडरशिप से इन्होंने दिखा दिया कि अगर प्रतिभा के साथ-साथ कुछ करने का जज्बा हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

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तुलसीदास
तुलसीदास

संत तुलसीदास

संत तुलसीदास जी हिंदी भाषा के एकमात्र सार्वभौम कवि थे, जिन्हें साहित्यिक, धार्मिक तथा सामाजिक ज्ञान-विज्ञान में रुचि रखने वाले विभिन्न वर्गों, संस्कारों और आस्थाओं से परिपक्व होकर निकले हुए मनीषियों ने सूक्ष्मतापूर्वक विवेचन कर देखा, परखा और एकमत होकर स्वीकार किया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. रामकुमार वर्मा के शब्दों में, “रूस में मैंने प्रसिद्ध समीक्षक तीखानीव से प्रश्न किया था कि सियाराम मय सब जग जानी के संत कवि तुलसीदास जी का रामचरितमानस आपके देश में इतना लोकप्रिय क्यों है?

तो उन्होंने उत्तर दिया था कि आप भले ही राम को अपना ईश्वर मानें, किंतु हमारे समक्ष राम के चरित्र की विशेषता यह है कि उससे हमारी वस्तुवादी जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान मिल जाता है। इतना बड़ा चरित्र विश्व में मिलना असंभव है।” तुलसीकृत मानस के पद्यानुवाद्कर्ता सोवियत  विद्वान एपी वरान्निकोव ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मेरी कब्र पर मानस को प्रिय चौपाइया अंकित की जाएं। लेनिनग्राद (कोमोरोव) में उनकी कब्र पर उक्त मानस की देवनागरी तथा रुसी भाषा में बालकांड का पांचवा दोहा, “भलो भलाइहि पै लही” को देखा जा सकता है।

तुलसीदास जी ने संस्कृत के अनेक श्लोकों के भाव एक ही चौपाई में व्यक्त किए और कहीं-कहीं उसे सुखद विस्तार दिया, किन्तु उनके प्रत्येक पद में नवीनता ही प्रतीत होती है। जहां भी उन्होंने किसी भी उक्ति को अपनायी है वह विषग और प्रकरण के सर्वथा अनुरूप है। उनकी समन्वयात्मक प्रवृत्ति ने रामभक्ति के अनेक ग्रंथों के सार को अपनाकर और उसे अपने व्यक्तित्व का पुट देकर ‘मानस-मधु’ में परिवर्तित कर दिया।

रामचरितमानस का प्रमुख आधार वाल्मीकि रामायणम् और अध्यात्म रामायणम् में विस्तार से, किंतु रामचरितमानस में संक्षेप में प्रासंगिक कथाओं और घाटनाओं का वर्णन है। चरित्र-चित्रण में अनेक ऐसे स्थल है जहां वाल्मीकि, व्यास और तुलसी में अंतर है। तुलसी सदा आदशोन्मुख-यथार्थ के धरातल पर होने के कारण लोकप्रिय हुए। इसी प्रकार तुलसी के संवादों में प्रचलित मुहावरों और कहावतों के प्रयोग में भी अन्य पूर्व के रामकाव्यों में अधिक अंतर आ गया, किंतु तुलसी का काव्य चित्ताकर्षक हो गया है। इसीलिए वह जनकवि बन गए।

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अब्राहम लिंकन का मातृप्रेम

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अत्यंत धर्मपरायण तथा देश्वर भक्त थे। एक बार किसी पादरी ने उनकी सात्विकता, दयालुता और ईश्वर निष्ठा देखकर कहा था। ‘हमारे राष्ट्रपति तो संत है।’

राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन होते हुए भी लिंकन असहायों व रोगियों की अपने हाथों से सेवा करने के लिए तत्पर हो जाते थे। एक बार वह राष्ट्रपति भवन में मिलने आए कुछ लोगों की समस्याओं की जानकारी ले रहे थे। एक महिला जैसे ही उनके समक्ष पहुंची कि उसे देखते ही लिंकन की आंखों से आंसू दुलक पड़े। उसने यह देखा, तो बोली, मिस्टर प्रेसिडेंट, आप अमेरिका के सबसे बड़े और सुखी व्यक्ति है। आपके चेहरे पर अचानक आई उदासी व आंखों से दुलके आंसुओं का कारण क्या है?  

राष्ट्रपति लिंकन ने सहज होते हुए कहा, ‘मैं किशोर था, तभी मां के साये से वंचित हो गया था। मेरी मां धर्मपरायण महिला थी। वह मुझे गोद में बिठाकर कहा करती थी कि हमेशा दुर्गुणों और दुव्यसनों  से दूर रहना। दूसरों की सेवा-सहायता करना कभी न भूलना। ईश्वर उसी पर कृपा करते है, जो दयालु और अच्छा इनसान होता है। मेरी मां ने मुझे अच्छे संस्कार दिए। मैं जो कुछ हूं, उन्हीं की कृपा से हूं। अब मैं जब भी किसी महिला को देखता हूं, मुझे अपनी माँ याद आ जाती है। यदि आज मेरे साथ मां होती, तो मैं सबसे सुखी व्यक्ति होता।’ कहते-कहते लिंकन फिर से रो पड़े।

तप का अर्थ है त्याग

गर्ग संहिता के रचयिता महर्षि गर्ग धर्मशास्त्रों के प्रकांड ज्ञाता थे। वह घोर तपस्वी और परम विरक्त थे। ऋषि-महर्षि और अन्य श्रद्धालुजन समय-समय पर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करने उनके पास आया करते थे।

एक बार शौनकादि ऋषि उनके सत्संग के लिए पहुंचे। उन्होंने प्रश्न किया, ‘धर्म का सार क्या है?’ महर्षि ने बताया, ‘सत्य, अहिंसा और सदाचार का पालन करते हुए कर्तव्य करने वाला ही धर्मात्मा है। धर्म ही तो मनुष्य को सच्चा मानव बनने की प्रेरणा देता है। प्राणिमात्र के कल्याण की कामना ही धर्म है।’ शौनकादि ऋषि ने दूसरा प्रश्न किया, ‘महर्षि, तपस्या का अर्थ क्या है?’ महर्षि ने उत्तर दिया, ‘तप का असली अर्थ है त्याग।

मनुष्य यदि अपनी सांसारिक आकांक्षाओं और अपने दुर्गुणों का त्याग कर दे, तो वह सच्चा तपस्वी है। सदाचार और सद्गुणों से मन निर्मल बन जाता है। जिसका मन और हृदय पवित्र हो जाता है, वह स्वतः भक्ति के मार्ग पर चल पड़ता है। उस पर भगवान कृपा करने को आतुर हो उठते हैं।’

ऋषि ने तीसरा प्रश्न किया, ‘असली भक्ति क्या है?’ महर्षि का जवाब था, ‘केवल भगवान की कृपा की प्राप्ति के उद्देश्य से की गई उपासना को निष्काम भक्ति कहा गया है। सच्चा भक्त भगवान से धन, संपत्ति, सुख-सुविधाएं न मांगकर केवल उनकी प्रीति की याचना करता है। वह प्रभु से सद्बुद्धि मांगता है, ताकि वह धर्म के मार्ग से विपत्तियों में भी नहीं भटके।’ महर्षि गर्ग के वचनों को सुनकर शौनकादि मुनि कृतकृत्य हो उठे |

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