Pyar ki Kahani- युवा पीढ़ी की गैर ज़िम्मेदारी, उनकी दिशाहीनता, उनकी लापरवाही की बात तो हम अक्सर करते हैं, लेकिन कभी उनकी नज़रों से दुनिया देखने की कोशिश नहीं करते हैं| प्यार किसी एक अभिव्यक्ति का मोहताज नहीं है इसके भिन्न रूप होते हैं| सेल्फ-लव, कैरियर को लेकर संतुष्टि भी इसी का रूप है| इस ब्लॉग में दो कहानियां हैं एक ‘प्रेम’ और दूसरी ‘मत जाओ ना’! दोनों ही बेहद रोमांटिक और सच्चे प्यार का अहसास करवाती हैं|
प्रेम
आज बहुत दिनों बाद दोनों का मिलना हुआ है। फ़ोन पर तो अक्सर बातें हो जाती हैं। लेकिन छोटा शहर होने के कारण उनका मिलना नहीं हो पाता था। लड़की को हमेशा ये डर रहता है कि ऐसे बार-बार मिलने से उन्हें कोई देख लेगा। इसीलिए जब वे मिलते हैं, तो लड़की हमेशा अपना चेहरा ढककर रखती है। छोटे शहर में अपने प्रेम को छुपाकर रखना, साँस लेने जितना ही ज़रूरी होता है।
लड़का तय समय से पहले ही पहुँच गया था। आते वक़्त उसने लड़की के लिए चॉकलेट भी ख़रीदी है। व्याकुलता बहुत ही तेजी से उसके मन में दौड़ रही है। उसमें आज कुछ खोया हुआ मिल जाने जैसी ख़ुशी है।
लड़की ने आज वही फिरोज़ी रंग का सलवार सूट पहना है, जो उसके जन्मदिन पर लड़के ने उसे दिया था। आने से पहले लड़की ने लड़के से पूछा भी था कि क्या पहनकर आऊँ। लड़के ने जवाब में ‘जो मन हो पहन लेना, तुम पर तो सब अच्छा लगता है,’ कह दिया था।
वे दोनों कृष्णा नदी के किनारे बैठे हैं। कुछ ही देर में सूर्यास्त होने वाला है। लड़का, लड़की का हाथ पकड़ना चाहता है लेकिन वो उसे ऐसा करने से मना करती है। लड़की कहती है कि उसे ऐसे हाथ पकड़ने में शर्म आती है। जबकि लड़का इस बात को अच्छे से समझ रहा है कि ये शर्म नहीं डर है, समाज का । हमारे समाज में लड़का-लड़की का, यूँ हाथ पकड़ना बेशरम होने जैसा है।
शाम की कृष्णा आरती शुरू हो गई है। वे दोनों दूर से ही आरती देखते हैं। भीड़ में जाने से उनका पकड़े जाने का ख़तरा है। सब कुछ कितना सुन्दर लग रहा है ना, लड़की कहती है। लड़का, उसको देखते हुए सिर्फ़ हाँ में जवाब देता है। आरती पूरी होने के बाद लड़की जाने के लिए कहती है। लड़का चुप रहता है। लड़की उसे लगातार देख रही है। लड़का, उससे नज़रें हटाकर शून्य में कहीं देखने लगता है।
जाते हुए लड़की ने लड़के से पूछा कि “तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो?” लड़का शून्य से नज़रें हटाकर लड़की को देखने लगता है। वो जवाब सोच ही रहा होता है कि लड़की जाने के लिए मुड़ जाती है। तभी लड़का पीछे से जवाब देता है, “जितना प्रेम, प्रेम शब्द में होता है, ठीक उतना।”
मत जाओ ना
ठीक छह बजे मिलने की बात हुई थी। निधि पहले ही पहुँच गई थी। उसने पाली के ढाबे पर आकर मानव को फ़ोन लगाया। सामने से एक आवाज़ आई।
“कहाँ हो?”
“ठीक ढाबे के सामने,” निधि ने कुछ हल्की आवाज़ में जवाब दिया।
“कुछ देर रुको!” सामने से आवाज़ आई और फ़ोन काट दिया गया। निधि सँकरी-सी गली से होते हुए अन्दर ढाबे की ओर गई। गली लड़के-लड़कियों से भरी हुई थी। हर तरफ़ चहलकदमी का माहौल था। भीतर जाकर उसे कुछ नए-पुराने दोस्त दिखाई दिए। उसने प्यार से सभी को हेल्लो कहा और एक कोने में जाकर बैठ गई। ढाबे में वह अक्सर बाहर ही बैठती थी। अन्दर बैठना उसके लिए एक मुश्किल काम था, लोगों का देखना या फिर पहचानना उसे कतई रास नहीं आता। ख़ासकर तब जब वह मानव के साथ हो। साथ होने में सिर्फ़ बैठना काफ़ी नहीं होता। साथ में आँखों का आँखों से मिलना और जान लेना भी शामिल होता है।
यह बात वह मानव को कभी समझा नहीं पाई। कितनी दफ़ा जब वह बाहर बैठने की ज़िद करती तो मानव कहता, “अरे कितना अच्छा है वहाँ सब, अन्दर बैठते हैं तो दोस्त, यार दिख जाते हैं! इसमें बुरा क्या है?” लड़के ज़िन्दगी और प्यार दोनों जगह अल्हड़ बने रहते हैं। साथ के मायने उनके लिए लड़कियों जैसे कभी नहीं होते। निधि के दिमाग़ में यह बात आई ही थी कि उसने मानव को सामने से आता हुआ देखा। उसे मालूम ही था निधि पहले की तरह कोने में ही बैठी मिलेगी। आते ही उसने पूछा, “उधर कोने में क्यों बैठी हो?” निधि ने रुखाई से जवाब दिया, “जैसे जानते नहीं!”
मानव ज़िद्दी था उसने मुस्कुराते हुए निधि को ठीक बीच की सीट पर बैठने को कहा। निधि टस से मस नहीं हुई। दुनिया भर के प्रेमी शहर, गली, सिनेमा में कोने की जगह की तलाश करते फिरते हैं और एक मानव है, उसे हमेशा बीच की जगह चाहिए होती है। बीच से सबको पता चल सकता है वह मानव से मिली है। पूरी डीयू की मंडली फिर कहाँ जाती है या तो आर्ट्स फैकल्टी या फिर यहाँ पाली की कैंटीन । शुरू-शुरू में निधि कभी नहीं चाहती थी कि वह और गहरे दोस्त बनें।
Pyar ki Kahani – मत जाओ ना
लेकिन समय को जो करना होता है, वह करता ही है। पहले साल दोनों में कम बात होती थी। दूसरे साल कॉलेज के फेस्ट में मिलने के बाद समय कैसे साथ गुज़रने लगा मालूम ही नहीं चल पाया था। प्यार के सरल दिन बादल की तरह उड़ जाते हैं और कठिन दिन किसी डूबती कुछ हुई नाव की तरह हमेशा बने रहते हैं। “कल जा रही हूँ!” निधि के कहते ही कमरे का मौन टूटा। मानव कुछ मायूस-सा उसकी ओर देखता रहा कहा कुछ भी नहीं।
निधि चाहती थी कि वह उसे रोक ले! लेकिन सिर्फ़ रोक लेना काफ़ी नहीं था। प्यार और रिश्ते के बीच एक गहरी दीवार होती है, जिसे छोड़ना या फाँदना होता है। मानव उस दीवार से हमेशा सटकर खड़ा रहा न उसने दीवार के पार कभी झाँका न कभी उसे पार करने की बात ही कही। निधि को मालूम था वह रुकने के लिए कभी नहीं कहेगा। इतने साल उन्होंने एक-दूसरे के आलिंगन में रातें गुजारीं। एक- दूसरे के स्पर्श और चुंबनों से भरी रही उनकी दुनिया! पर दोनों ने किसी के जाने पर कभी नहीं कहा रुक जाओ।
क्या होता अगर कह देते? निधि कई बार सोचती तो उसका आत्मसम्मान उसके आड़े आ जाता। लड़कियाँ बड़ी मुश्किल के बाद जिस आत्मसम्मान को पा पाती हैं, वह एक प्रेमी के आने भर से उखड़कर चकनाचूर हो सकता है। यह बात निधि अच्छी तरह से जानती थी। छह बजे के साथ-साथ घड़ी घूमते हुए नौ तक आ गई थी। वेटर ने आकर समय की ओर इशारा कर दिया था। निधि को मानव से जवाब चाहिए था। मानव चुप था।
दोनों रात के सन्नाटे में जीटी हॉल की ओर जा निकले। मानव ने पहले निधि की कनकी उँगली को छुआ और फिर उसे अपनी कनकी उँगली में बाँध लिया। धीरे-धीरे घुलती हुई कनकी उँगलियाँ हाथ की बन्द मुट्ठी में तब्दील होने लगीं। रात के सुर्ख अँधेरे में ग्रेस चर्च के ठीक सामने मानव ने निधि को चूमते हुए कहा, “मत जाओ ना!” गेट के ठीक पास आम का पेड़ मुस्कराया मानो कह रहा हो रोकने और जाने देने के बीच सिर्फ एक शब्द, “मत जाओ ना ही तो है!”
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