Hamari Adhuri Kahani – इस ब्लॉग में 2 कहानी हैं और दोनों ही ब्रेकअप के बाद वाली स्थिति की और इशारा कर रही हैं| 2 प्यार करने वाले कभी-कभी जिंदगी के इस बीच सफ़र में ही एक दुसरे से जुदा हो जाते हैं| आज हम ऐसी ही 2 कहानियां लेकर आये हैं|
लास्ट सीन
दुनिया की हर समस्या इस लास्ट सीन से जुड़ी होती है। प्रेम का अन्त हो या प्रेम की शुरुआत सभी एक-दूसरे का लास्ट सीन देखकर सोते-जागते हैं। कभी-कभी ये लास्ट सीन ब्रेकअप के बाद दिए जाने वाले हज़ारों तानों और गालियों में तब्दील हो जाता है। दो प्रेमियों में से कौन आगे बढ़ गया है, कौन वापस लौटने की आस लिए बैठा है के बीच एक लास्ट सीन हमेशा काम करता है। रात के ठीक तीन बजे थे। विपुल ने फ़ोन उठाया तो सबसे पहले सान्या का नाम टाइप किया। सान्या का नाम देखते ही उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर उसे दिखाई दी।
फिर उसने इनबॉक्स खोलकर सान्या का लास्ट सीन चेक किया। ठीक एक मिनट पहले तक वह वाट्सएप पर थी, मानो जगी हुई थी। विपुल को कुछ जलन हुई। कितने दिन वह सान्या से कहता रहा कि रात में बात किया करेंगे पर वह थी कि हर बार ब्यूटी स्लिप का बहाना बनाकर जल्दी सो जाती। जल्दी सो जाती कि सिर्फ़ सोने का बहाना करती? उसने मन ही मन सोचा और उसकी जलन हज़ार गुना बढ़ गई। प्यार में प्यार से ज़्यादा जलन काम करती है, ख़ासकर तब जब आपके बीच एक दूरी आ गई हो।
विपुल और सान्या को बात किए पूरे तीस दिन हो चुके थे। जो शायद यह बताने के लिए काफ़ी थे कि उनके बीच अब कुछ नहीं रहा है, या शायद कुछ भी नहीं था। विपुल ने लास्ट सीन देखकर फ़ोन फेंक दिया था और अपना मुँह तकिये में दबा लिया था। लड़के जब रोते हैं तो किसी के सामने रोए न रोए, पर तकिये के सामने ज़रूर रोते हैं। विपुल को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वह रो क्यों रहा है। कुछ देर सिसकी भरने के बाद वह सो गया था। अब कमरे में सिर्फ़ पंखे की आवाज़ गूँज रही थी।
सुबह के क़रीब दस बजे जब माँ कमरे में आई तो उनकी नज़र विपुल के फ़ोन पर गई। फ़ोन की स्क्रीन अब भी ऑन थी, जिस पर जानू लिखा था और एक लड़की की तस्वीर लगी थी। लास्ट सीन रात चार बजे। माँ ने समझ लिया था कि हो न हो ये जानू जो भी है, विपुल उससे बात कर रात को ही सोया है। इसलिए उन्होंने उसे न जगाना ही बेहतर समझा और वापस लौट गई। माँओं के साथ परेशानी यही है कि वे जानती सब हैं पर ज़ाहिर कभी नहीं होने देतीं। विपुल की माँ ने भी ठीक ऐसा ही कुछ किया था।
विपुल की आँख क़रीब-क़रीब ग्यारह बजे खुल गई थी। उसने आज कॉलेज न जाने की ठानी थी। जाता भी क्यों? पहले सान्या होती तो उसका मन क्लास लेने का करता और बहुत देर तक दोनों कैम्पस में ही घूमा करते। लेकिन जब से दोनों की लड़ाई हुई थी दोनों ने बात करना बन्द कर दी थी। विपुल की ईगो सान्या से बड़ी थी और सान्या की ईगो विपुल से सौ गुनी। अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता किसी को कहाँ बर्दाश्त होता है।
सान्या की दोस्त ने उससे पूछा तो सान्या ने यही जवाब दिया था कि विपुल से प्यारा उसे उसका आत्मसम्मान है। हर बार आत्मसम्मान एक रिश्ते को ले डूबता है। आत्मसम्मान न हो गया नाव हो गई। विपुल तय करने के बाद कॉलेज नहीं गया था। उसने घर पर क्लास जाने का बहाना बनाया और सीधे पब निकल गया। जब उसका मन कहीं नहीं लगता वह पब में जाकर बैठ जाता। नाचना उसे पसन्द था लेकिन हर किसी के साथ नहीं। कई बार वह बैठकर सिर्फ़ देखता। नए गानों पर थिरकते लड़के-लड़कियों में न जाने कितने अनजाने चेहरे उसे दिखाई दे जाते।
कॉलेज के पहले दिन की पब पार्टी में सान्या उसे मिली थी। हल्का बदन नीली शान्त आँखें और झूमती हुई वह उसे डांस फ्लोर पर खींच ले गई थी। “क्या अजीब लड़की है, न जान न पहचान”सान्या की बेबाक़ी देखकर उसे ताज्जुब हुआ था। वह शहर जहाँ लड़कियों का दुपट्टा सरक जाए तो अच्छा-खासा बवाल मच जाता है वहाँ सान्या का होना किसी क्रान्ति से कम नहीं था। हाँ पब में आई लड़कियाँ यहाँ अपने मन के कपड़े ज़रूर पहनती थीं।
लेकिन ज़्यादातर घर जाने से पहले सूट-कमीज़ पर लौट आती थीं। सान्या विपुल के साथ बहुत देर तक नाचती रही और फिर उसने अपना नाम बताया- “मैं सान्या कॉलेज यूनियन की हेड! तुम विपुल हो और राजनीति में तुम्हारी दिलचस्पी है। हमारे साथ रहोगे तो फ़ायदे में रहोगे।” कहते हुए वह अपने दोस्तों के साथ निकल गई। उसने न अपने कपड़े बदले न ही किसी तरह का कोई बदलाव पब के बाहर जाने पर उसमें दिखाई दिया। विपुल ने कभी ऐसे किसी को नहीं देखा था। उसकी आँखों में आई यह पहली ही लड़की थी।
विपुल ने अपना ध्यान हटाया ही था कि वेटर ने उससे आकर पूछा- “सर
कुछ लेंगे?” विपुल ने न में सिर हिलाया और बाहर चला गया। बाहर जाते हुए उसे अजीब-सा लगा। उसने बाइक कॉलेज की ओर मोड़ दी थी।
सान्या, अब वह सान्या नहीं रह गई थी अल्हड़ और मदमस्त, किसी की परवाह न करने वाली। उसके पापा के जाने के बाद उसमें बहुत बदलाव आ गए थे ये बात विपुल ने नोटिस की थी। अब वह न पब जाती थी न अपनी पसन्द के शौक़िया कपड़े ही पहनती थी। विपुल ने कितनी ही बार उससे कहना चाहा कि मैं हूँ न पर उसके होने का भरोसा उसे कभी नहीं हो सका था। जब तक पिता का हाथ लड़कियों के सिर पर होता है वे हमेशा मज़बूत बनी रहती हैं। पर पिता का न होना एक डर को पैदा ही नहीं करता बल्कि बढ़ा भी देता है। सान्या अब ख़ामोश रहने लगी थी।
उसने विपुल से बात करना लगभग छोड़ दिया था। दोनों मिलते तो दोनों के बीच रूखी-सूखी बातें होतीं और दोनों लौट जाते। समय भले ही न बदले पर प्यार में एक समय ऐसा आता है जब शब्द बदलने लगते हैं। विपुल ने सोचा और सोचते हुए वह कॉलेज के गेट पर आ खड़ा हुआ था। उसने बाइक एक तरफ़ लगाई और सान्या के पास क्लास की ओर बढ़ गया। सान्या क्लास में एक खिड़की की ओर बैठी हुई थी। जियोग्राफ़ी की क्लास थी वह। क्लास ख़त्म हुई तो विपुल ने सान्या का हाथ कसकर पकड़ लिया।
दोनों एक दूसरे के बेहद क़रीब आ गए थे। “क्या करना है सान्या इतने दिन से एक भी शब्द नहीं?” विपुल को अब ये हाथ वैसे नहीं लग रहे थे जैसे तीन साल पहले थे। विपुल उदास सान्या की आँखों में देख रहा था। सान्या ने हाथ झटकते हुए विपुल की ओर देखा और कहा, “अमित और मैं साथ हैं विपुल!” विपुल को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका सबसे क़रीबी दोस्त और उसकी प्रेमिका। बहुत देर वह सान्या को देखता रहा फिर उसने कुछ ही शब्द सुने, “पापा हमारी शादी!” सान्या बहुत कुछ कहकर जा चुकी थी।
विपुल अब भी क्लास के डेस्क पर बैठ अपने आसपास देख रहा था। चीजें उतनी तेज़ी से नहीं बदलतीं, जितनी तेज़ी से वक़्त बदलता है उसने सोचा और उसके सामने हँसती हुई मस्त सान्या दौड़ गई। विपुल ने अपना फ़ोन निकालकर व्हाट्सएप खोला उसमें अभी भी सान्या का लास्ट सीन दो मिनट पहले दिखा रहा था। विपुल ने अमित का नाम टाइप किया और लास्ट सीन की ओर देखा वह अभी भी ऑनलाइन था। विपुल ने हमेशा के लिए व्हाट्सएप बन्द कर दिया।
उसके दोस्त अक्सर उसे फ़ोन कर उसका लास्ट सीन पूछते हैं कोई नहीं जानता वह आख़िरी बार वहाँ किसके साथ था। विपुल अब भी कभी-कभी उस डेस्क पर बैठता है, जहाँ वह सान्या से आख़िरी बार मिला था और उस पब में जाता है जहाँ पहली बार उसने सान्या को देखा था।
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Hamari Adhuri Kahani
तुम्हारे न होने से
काश कि हर सुबह वही ताज़गी महसूस होती, जो माँ की कोख से निकलकर महसूस हुई थी। काश कि रात में बहाए आँसू सुबह की रूमानी बूँदें बन जाते। यह काश का सिलसिला काश ख़त्म हो जाता।
कोहरे से ढकी सुबह ने दस्तक तो दे दी थी, मगर मेरी आँखों ने उठना क़बूल नहीं किया। कैसे करतीं क्योंकि इन्हें तो आदत ही तुम्हारे वॉयस मैसेज से जागने की है क्योंकि जब तुम रात को जल्दी चले जाते हो, तो सुबह मुझे अपनी आवाज़ से ऐसे ही उठाते हो। अब न तुम्हारी आवाज़ है और न तुम्हारा कॉल क्योंकि तुम चले गए हो, इन सबसे बहुत दूर। इतना सोचते- सोचते आख़िर अनिका की आँखों ने अपनी सीमा लाँघ दी और आँसू की बूँदें ढुलककर गाल पर ठहर गईं। सच बहुत मुश्किल होता है, आँसुओं को सँभालना क्योंकि जज्बातों की तरह इन्हें भी केवल बहना पसन्द है।
भारी मन से अनिका ने मोबाइल से नज़र फेरते हुए अपने क़दम पलंग से नीचे किए कि आँखें बिस्तर पर पड़े आदित्य के रूमाल पर पड़ीं। बुझे मन से जब उसे उठाकर देखा, तो फिर आँसुओं ने बहना शुरू कर दिया। रुमाल को आँखों से लगाते हुए अनिका का कलेजा फट-सा गया क्योंकि यही ख़ुशबू रात भर कंबल के अन्दर महसूस हुई है। “तुम नहीं हो आदि, तुम नहीं हो। जाते- जाते अपनी खुशबू भी लेकर चले जाते क्यों छोड़ गए उसे इस तरह मेरे जिस्म में। अगर जाना ही था फिर नज़दीक क्यों आए तुम?
अब तुम्हें कहाँ-कहाँ से अलग करूँ? इस जिस्म की महक से? बिस्तर की तहों से आती ख़ुशबू से? कमरे में तुम्हारे सजाए हुए सामानों से? बहुत मुश्किल है मेरे लिए आदि मगर तुम, तुम कैसे इतने पत्थर दिल बन गए? ‘अनिका, तुम बहुत प्यारी हो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।’ तुमने ही तो कहा था मगर कल तुम चले गए क्योंकि तुम्हें अब मुझमें प्यार नज़र नहीं आ रहा था। तुम्हारी नज़र से देखूँ तो मैं अब बदल गई थी। क्या बदलाव इतना बुरा होता है? मैंने बस ज़िन्दगी से तंग आकर कुछ कहा था तुम्हें, मगर तुमने तो सब ख़त्म कर दिया।
सच कहूँ तो उम्मीद और वादा हिन्दी शब्दकोश के ऐसे शब्द हैं, जिनसे अब पीड़ा होने लगी है। उम्मीद भी तुमसे थी, क्योंकि वादे तुम्हारे थे।
“तुम…” इतने में डोर बेल की घंटी के बजने की आवाज़ आई। अनिका के क़दमों में सर्दी के मौसम में मानो सावन की खनक आ गई। आदि के वापस आने की सुगबुगाहट मात्न से ही उसके शिथिल क़दमों में ऊर्जा आ गई और दरवाज़े के पास उसे खोलते हुए वह बोलने ही वाली थी कि उसके शब्द गले में ही अटक गए। “दीदी, मेरा नाम सुमन है। मुझे यहाँ आदित्य ‘भैया ने भेजा है। बाक़ी बचा हुआ सामान लेने।”
“बचा हुआ सामान?” जी में आया कि कह दे, हाँ ले चलो तुम्हारे सामने ही खड़ी हूँ मैं। आदित्य मुझे साथ ले जाना भूल गया है।
क्या प्यार में पड़ी स्त्री अपने प्रेमी के लिए हर सम्बोधन स्वीकार कर लेती है, जैसे अनिका ने किया। शायद प्यार ऐसा ही होता है कि उसे बस अपने प्रेमी की चाह होती है, उसे देखने की तड़प होती है।
“दीदी” … दोबारा आवाज़ आने पर अनिका अपने ख़यालों से बाहर आई और दरवाज़े को खोलते हुए कहा, “अन्दर आ जाओ और जो सामान है, उन्हें ले जाओ।” इतना कहकर अनिका वहाँ से चली गई। सुमन आदित्य भैया के कपड़ों को पैक करने लगा। अनिका दूर से अपने बिखरे हुए कमरे को देख रही थी। कहीं आदि के मोजे बिखरे हुए थे तो कहीं उसके जूते। “आदि, तुम अपने मोजे सही जगह पर क्यों नहीं रखते? हमेशा तुम न ऐसे ही करते हो।” “अनिका, ढूँढ़ दो न प्लीज़। तुम हो न मेरे पास, तो थोड़ी लापरवाही करने दो।”
इतना सुनकर ही मन खिल जाता है। मन करता था कि सती सा तपकर तुम्हें इस जन्म में अपना बना लूँ मगर… बगल के कपबोर्ड से अचानक शीशे के टूटने की आवाज़ आई और अनिका के अतीत के ख्वाबों का पुलिंदा ढह गया। जाकर देखा तो फ़र्श पर आदि के पसन्दीदा कप के टुकड़े पड़े थे, जिससे वह हर स्पेशल दिन या खुशियों में चाय पिया करता था। वह जाकर उन टुकड़ों को ऐसे समेटने लगी मानो टूटे दिल के टुकड़े पड़े हुए हों। काश, इन टुकड़ों को सँजोए रखने से आदि वापस आ जाए। न जाने क्या सूझा अनिका को कि उसने बिखरे हुए टुकड़ों को अपने पास सैंजो लिया।
उसके बाद वह सुमन के साथ आदि का सामान रखने लगी मगर अपने पास। कभी मोजों को उठाकर मुट्ठी में भींच लेती, तो कभी उसकी कलम को अपने कपड़ों से ढक देती। आदि के सामान को सँजोकर रखना उसके लिए बीते लम्हों को वर्तमान में खड़ा करने के लिए काफ़ी था। सुमन ने आदि का सामान रख लिया और जाते-जाते कहते हुए गया कि “दीदी, अब आदित्य भैया नहीं आएँगे। आप ध्यान रखिएगा।” इतना कहकर सुमन वहाँ से चला गया।
उसके जाते ही अनिका आदि के सामान को देखने लगी क्योंकि अब इन्हीं के साथ उसे जीना था। इतने में दोस्तों के मैसेज आने शुरू हो गए। “यार, अनिका मूव ऑन। यह सब होता रहता है, इसे पार्ट ऑफ़ लाइफ़ समझ और आगे बढ़। तेरे लिए एक अच्छा लड़का इन्तज़ार कर रहा होगा।” वनिता का मैसेज था। अब उसे क्या कहूँ, आदि को ही लाइफ पार्टनर मान लिया था और उसे ही लाइफ़ बना दिया था। कैसे करूँ मूव ऑन ? लोग कह देते हैं बड़ी आसानी से, मगर कैसे करें यह नहीं बताते। ऐसे ढेरों मैसेजेस अनिका के फ़ोन में भरे हुए थे।
कुछ ने यहाँ तक कह दिया था कि लड़के ऐसे ही होते हैं, साथ रह लेंगे, सब कुछ कर लेंगे और लास्ट टाइम में कहेंगे, “अब प्यार महसूस नहीं होता। सालों को पहले नहीं पता होता कि कब तक प्यार महसूस होगा?” प्यार में पड़ा अनिका का दिल धधक उठा। आदि के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल ग़लत है क्योंकि आदि सबसे अलग है क्योंकि वो मेरा आदि… मेरा आदि? अब वो मेरा नहीं है या वो अब भी मेरा है? साथ रहने से ही क्या कोई अपना हो जाता है? आदि क्या अब मेरा नहीं है? क्या मेरा प्यार ख़त्म हो गया?
अनिका ऐसे सवालों के बीच घुटने लगी और फ़ोन को बन्द करके बालकनी में टहलने लगी। सामने के फ़्लैट में कुछ बच्चे खेल रहे थे और आसपास बने पेड़ों पर पक्षी मँडरा रहे थे। सुबह हमेशा ऐसे ही आगे बढ़ती है, भले ही कोहरा हो मगर सूरज रोशनी देना चाहता है इसलिए वह हर दिन आता है। यहाँ के लोगों से उसका केवल खुशी देने का रिश्ता है, फिर आदि को ख़ुश देखकर मुझे बुरा क्यों लग रहा है? वह मेरे पास नहीं है, क्या इसलिए मुझे बुरा महसूस हो रहा है?
अनिका के चेहरे पर भले ही स्थिरता पसरी हुई थी मगर मन में सवालों की ज्वालामुखी फूट रहे थे। क्या उसका होना मेरे लिए काफ़ी नहीं है? क्या उसकी हँसी मेरे लिए काफ़ी नहीं है? वह जहाँ रहे खुश रहे, क्या यह मेरे लिए काफ़ी नहीं है? फिर क्यों मुझे बुरा महसूस हो रहा है? “आदि तुम हो। भले ही सामने नहीं हो, मगर मेरे भीतर हो। तुम्हारी ख़ुशी जिसमें है, तुम वहाँ हो। मगर मेरी ख़ुशी तुममें है इसलिए तुम्हारी ख़ुशी में मैं भी खुश हूँ।” इतना कहते हुए अनिका ने आदि के सामान को अपनी अलमारी में बन्द करते हुए कहा,
“तुम्हारी हर ख़ुशी में मैं साथ हूँ। तुम बस ख़ुश रहो।” इतना कहकर अनिका किचन में चली गई और चूल्हे पर आदि की फेवरेट चाय बनाते हुए गाना सुनने लगी।
ज़िन्दगी प्यार का गीत है, जिसे हर दिल को गाना पड़ेगा।
प्यार ऐसा ही होता है, जिसे देना आता हो।