Hindi Story- कहानी सुनना और पढ़ना सबको पसंद होता है, यहाँ आपको हर प्रकार की कहानियां मिलेगी, कुछ प्रेम और कुछ ऐसी जो आपको निज़ी जिंदगी में इंस्पायर भी करेगीं| इस ब्लॉग पोस्ट में एक माही नाम की लड़की की अनूठी कहानी है जो एक सफ़र पर निकली है, बिलकुल अनजान कि आगे कहाँ जाना है बस कहीं पहुंचना उसकी ज़िद है| वो इशारा और सीख है उन लड़कियों और महिलाओं के लिए जो कहती हैं कि अकेले सफ़र से डर लगता है| माही का मानना है कि इस दुनिया में पहले लोग आपको डराते हैं और फिर आप पर तंज कसते हैं इसलिए डर किसी भी तरह का हो, उस पर जीत पानी ही पड़ेगी |
अनजान सफ़र
यह सब हताशा में शुरू किया गया था। ठीक पाँच बजे वह घर से निकली थी। घर से पाँच बजे निकलना उसके लिए नई बात थी। सुबह की ठिठुरन और हल्की सी रोशनी के बीच ठीक सात बीस पर उसने बस पकड़ी। बस कहाँ की थी उसने नहीं देखा। या शायद देखने की हल्की-सी भी जहमत नहीं उठाई। ज़िन्दगी में कई बार ऐसे भी लम्हे आते हैं, जब हम कहीं पहुँचना नहीं चाहते। तब अनजान रास्ते हमें कहीं भी ले जा सकते हैं। कोई भी रास्ता कहाँ जाता है की ख़बर सिर्फ़ गूगल मैप को हो सकती है यूँ भी इंसान के लिए चीज़ें सीमित हैं।
बस ख़ाली नहीं थी, उसमें कहीं न कहीं जाने वाले भरे हुए थे। इस बार न तो कंडक्टर ने पूछा कि कहाँ जाना है, न उसने कोई जवाब ही दिया। बस एक पिंक टिकट उसके हाथों में थमा दी। कुछ ही देर में बस नए रास्तों के बीच से गुज़रने लगी। माही बाहर देख रही थी लेकिन उसके भीतर बहुत सी आशंकाओं ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। आगे कहाँ जाना है के सवाल उसे घेरे हुए थे। पहले साल कॉलेज में आई लड़की कहाँ जा सकती है? इसका अन्दाज़ा किसी को नहीं था।
वह घर से निकल तो गई थी लेकिन कहाँ जाने के लिए, इसका अन्दाज़ा वह नहीं लगा पा रही थी। ठीक एक घंटे बाद वह कश्मीरी गेट पर थी। यहाँ से उसने बस लेने की सोची और वह प्लेटफॉर्म की ओर निकल गई। प्लेटफॉर्म पर कई जगह जाने वाली बसें थीं। तभी उसे अपनी दोस्त नमिता का ख़याल आया। उसने देहरादून जाने वाली बस का टिकट लिया और उसमें बैठ गई। बस को ठीक शाम तक देहरादून पहुँचना था। हुआ भी यही । देहरादून पहुँचने में बस को बहुत लम्बा समय लग गया। बस यात्रियों से भरी हुई थी।
माही ने किसी से बात न करना ही उचित समझा इसलिए वह खिड़की के बाहर देखने लगी। खिड़की के बाहर एक बड़ी दुनिया थी, जिसमें आने-जाने वाले लोगों से लेकर ठहरे हुए लोग दिखाई पड़ते थे। माही बाहर देखते-देखते सो चुकी थी। आँख खुली तो वह किसी सुन्दर से सपने से जागी हो जैसे। बाहर दूर तक हरियाली थी और नीला आकाश फैला हुआ था। माही को कुछ संतुष्टि मिली। अब वह उन लोगों का मुँह बन्द करवा सकेगी, जो कहते हैं कि लड़कियाँ कहीं भी अकेले नहीं जा पातीं। शाम के तक़रीबन सात बजने वाले थे।
माही बस से उतर चुकी थी। उसने स्टैंड पर आसपास देखा उसकी दोस्त नहीं आई थी। माही को कुछ डर लगा। डर अक्सर ‘भीतरी नहीं होते, कभी-कभी बाहरी भी हो जाते हैं।बाहर अँधेरा होनेवाला था लेकिन उसने हिम्मत न हारते हुए अपना फ़ोन उठाया और झट से होटल बुक कर लिया। होटल बुक करने से पहले उसने सबसे पहले उसके रिव्यू देखे। डर में दिमाग़ ज़्यादा तेज़ी से काम करता भी है। उसने पास स्टैंड से रिक्शा ली और समय पर होटल पहुँच गई। होटल उसे ठीक लगा था।
वह कमरे में गई और उसने टीवी ऑन कर लिया। टीवी देखते हुए अब वह बेहतर महसूस कर रही थी। उसने अपनी दोस्त को फिर फ़ोन लगाया लेकिन न तो रिंग लगी, न उसका फ़ोन ही आया। रात के ठीक आठ बजे उसे हल्की नींद आनी शुरू हो गई थी। नींद के साथ नई जगह का डर भी उसे सता रहा था। उसने किताब उठाई और कुछ देर पढ़ने लगी। पढ़ते हुए अक्सर बेहतर नींद आती है। यह बात उसे मालूम ही थी लेकिन एक तो पढ़ने से उसका ध्यान बेकार की बातों की ओर नहीं जा रहा था। दूसरा पहाड़ों की हल्की ठंड उसे नींद के आगोश में लेने को तैयार हो गई थी।
Hindi Story – अनजान सफ़र
माही को फिर मालूम ही नहीं चला कि कब रास्ते की थकान और उसके डर नींद में बदल गए थे।सुबह उठी तो उसने बालकनी से सूर्य को उगते देखा। दो पहाड़ों के बीच चमकता हुआ सूर्य उसे बेहतर लग रहा था। उसने पहली बार जाना अगर हिम्मत हो तो पहाड़ के बीच से भी सूर्य की तरह उगा जा सकता है। होटल से बाहर निकलने के बाद उसे फिर मालूम नहीं था उसे कहाँ जाना है। एक रात उसने धर्मशाला में बिताई। फ़ोन चार्ज न होने से उसकी अब कुछ ही बैटरी बची हुई थी।
उसने बैट्री को बचा रहने दिया। पूरा दिन वह देहरादून में घूमती रही। पहाड़ों ने उसके डर को कुछ कम किया था। आज रात बादल थे उसने रास्ते तलाशने की कोशिश की लेकिन उसे रास्ते नहीं मिले। क़रीब ग्यारह बजे उसी दोस्त का फ़ोन बजा।
उसने फ़ोन उठा लिया था। दोस्त ने पहले उससे उसका पता पूछा और फिर कुछ ही देर में उसे लेने आ गई। दोनों अब घर की ओर निकल गए थे।
माही कार में बैठी हुई ख़ुद पर गर्व कर रही थी। कहाँ वह लड़की जिसे हमेशा डरपोक और कमज़ोर समझा जाता था आज दो शहर माप रही है। दो शहर मापना दरअसल शहर मापना नहीं था बल्कि वह एक विचारधारा को नाप आई थी। दोस्त ने कार में बैठे हुए माही से पूछा, “क्या तुम दिल्ली वापस घर जाना चाहोगी?”
माही ने जवाब दिया, “घर कहीं होते नहीं हैं, बल्कि बनाने होते हैं, क्या तुम मुझे यहाँ कहीं नौकरी दिलवा सकोगी?” दोस्त बहुत देर तक उसे देख मुस्कुराती रही वह जानती थी एक और परिंदा पिंजरा तोड़कर आकाश में उड़ने को तैयार हो गया है।
यह थी माही के अनजान सफ़र की कहानी जिसका अंत बहुत ही खुशनुमा रहा| कहानी अंत में इस ओर इशारा कर रही है कि डर के आगे जीत है| हमें समाज के तानों और फब्तियों से बिना डरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए, क्योंकि बहुत से लोग आपकी जिंदगी को और कठिन बनाने आते हैं तो कभी किसी के सहारे की इच्छा किये बिना अकेले सफ़र पर निकलो काफिला स्वयं ही बन जाएगा|
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